जनता की लूट कर जेब , सरकारी अफसर खा रहे है सेब !
जिसकी तनख्वा पाते हैं , उसी काम का पैसा मांगते साहेब !!
क्यूँ नहीं ? आखिर जो देगा वो तो लेगा ही,
जितना दिया है , दोगुना वसूलेगा ही !!
मैंने दिया और मेरा काम हो गया
लेने वाला लेकिन और भूखा हो गया !!
देते जाइये और फिर लेते जाइये
लेन - देन एक अग्निचक्र ऐसा है
जिसका केंद्रबिंदु सिर्फ पैसा है !!
जलाने वाले इसके बाहर बैठे हो रहे माला-माल
जलने वाले अन्दर फंसकर हो गए कंगाल !!
इस कंगाली को खंगालिए
ज़रा अपने को संभालिये !!
ईमानदारी भी एक समंदर है
जिसका बाहर ना अन्दर है !!
खारे पानी से प्यास तो बुझती नहीं
काफी है लेकिन आग बुझाने के लिए !!
चक्र चाहे कितना ही बड़ा क्यूँ ना हो
एक लहर ही काफी है इसको बहाने के लिए !!
bhai aur likh aise aise
जवाब देंहटाएंdhanyawad... koshish rahegi
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