Kuch Hasin Yaadein

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रविवार, 22 मार्च 2009

इक सफर

एक आदमी अपने सफर पर जा रहा है ... दूर- दूर तक साफ़ दिखने वाली खाली सड़क , फुल स्पीड , मनपसंद तरानों का लुत्फ़ लेता हुआ ... उसको लग रहा है मानो हजारों पल फुरसत के मिल गए हो लेकिन वो अभी अन्जान है , वो अन्जान है उस खतनाक मोड़ से जो उसका इंतज़ार कर रहा है ! वो मोड़ जिस पर आते ही या तो वो गाड़ी घुमाने में सफल हो जायेगा या तो नहीं ...... नहीं मुड पाया तो सफर ख़त्म .... और जो मुड गया तो एक झटके के बाद सफर की नई शुरुवात !





अब भी सफर वो ही है लेकिन वो सफर वो नहीं रहा क्यूंकि अब वो खाली सड़क तो है लेकिन उस पर कहीं से भी किसी भी गाड़ी या फ़िर से किसी भयानक मोड़ के आ जाने का डर है ... इसीलिए अब बहुत सँभालते हुए आम स्पीड से भी कम पर चल अहा है.... अब भी वो मनपसंद गाने चल रहे हैं लेकिन उनकी आवाज़ जो पहले दिल तक जा रही थी अब सिर्फ़ कानों तक ही पहुँच पा रही है और वो फुरसत के लिए ... वो तो छूमंतर हो गए ?

नहीं !!


वो ही पल हैं, वो ही गाने हैं , वो ही खाली सड़क है .... फर्क सिर्फ़ इतना है की इस सब का लुत्फ़ नहीं रहा क्यूंकि अब एहसास नहीं है ! एहसास होते ही लुत्फ़ भी वापिस आ जाएगा !





ये तो होता ही है इसमें क्या ख़ास है .... हाँ , कुछ भी तो नहीं अगर सिर्फ़ इतना ही है ... ख़ास बात तो तब आती है जब ऐसे ही किसी खतरनाक मोड़ के बाद खाली सड़क खाली नही रह जाती , उस पर कई गाडियाँ आ जाती है वो भी दोनों तरफ़ से... अब स्पीड का तो नाम ही नहीं है...... गाने तो पता ही नहीं चल रहे हैं भी या नहीं ...... और फुरसत .... अरे ! ये क्या होता है ?? अब वो चाहे भी तो लुत्फ़ नही ले सकता !





अगर लुत्फ़ लेना है तो इसी भीड़ में, नापसंद गानों के बीच , इसी व्यस्तता में लेना होगा क्यूंकि दोस्तों यह सफर ज़िन्दगी का सफर है, यह सड़क ज़िन्दगी है , भीड़ है ज़िन्दगी की मुश्किलें और मनपसंद गाने है अनुकूल परिस्तिथियाँ !!